बुधवार, 23 दिसंबर 2009

हम नहीं सुधरेंगे - बीबीसी हिन्दी सेवा

छः मास हुए, मैंने एक पोस्ट में बीबीसी हिन्दी सेवा के हिन्दी समाचारों में हर तरफ़ इफरात में बिखरी वर्तनी, व्याकरण, प्रूफ़-रीडिंग आदि की गलतियों की और ध्यान दिलाने का प्रयास किया था. आज के समाचार पढने एक बार फिर गलती से वहाँ चला गया तो वे फिर से हिन्दी की कहावत ढाक के तीन पात का मतलब चरितार्थ करते हुए नज़र आये.
उनकी कुछ गलतियाँ अनायास नहीं बल्कि आतंकवादियों के आकाओं के पक्ष में वातावरण तैयार करने का सुनियोजित प्रयास लगती हैं. उदाहरण के लिए, आज के मुखपृष्ठ पर उन्होंने पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक आतंकवादी दावूद गिलानी उर्फ़ दाऊद गिलानी उर्फ़ डेविड कोलमेन उर्फ़ हेडली को अमेरिकी मूल का पाकिस्तानी नागरिक बताया है. उसी पृष्ठ पर पहले की तरह ही अन्यत्र एक छपाई की गलती भी स्पष्ट देखी जा सकती है परन्तु दाऊद गिलानी वाले वाक्य में छपाई की कोई गलती नहीं है. सिर्फ उसका असली नाम छिपाया गया है और उसके मूल देश तथा नागरिकता को उलट-पलट कर दिया गया है.

पिछले महीने जब बकरीद के मौके पर सारी दुनिया में गली चौराहों में बकरों, गायों, भैसों और ऊँटों की हिंसक बलि दी जा रही थी तब बकरीद से चार दिन पहले और उसके एक हफ्ते बाद तक इसी वेबसाईट ने ईद का कोई ज़िक्र न करके नेपाल के एक मंदिर में बलि की खबर को लगातार अपने मुखपृष्ठ पर रखा था. एक विश्व स्तरीय वेबसाइट BBC का लगातार इन सब पूर्वाग्रहों को हिन्दी पाठकों पर थोपना क्या कुछ निहित उद्देश्यों की झलक नहीं दिखाता है?

29 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल दिखलाता है। आपकी नज़र बहुत दूर तक देखती है। मगर ये कभी नहीं सुधरेंगे। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  2. धर्म और त्योहार के नाम पर इतनी बड़ी कुर्बानी.. कैसी .मानवीयता की पहचान है दुनिया वाले सोचते ही नही है..बढ़िया प्रसंग..धन्यवाद

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  3. वैसी ही गल्तियां आप कर रहे हैं, प्रथम पंक्ति में शब्‍द 'इफरात' का मतलब हिन्‍दी पाठकों को बताईये, दूसरे बकरीद नाम का त्‍यौहार कोई नहीं होता, एकबार कलैण्‍डर या डायरी देख लें Id-ul-Azha मिलेगा, जाहिल उसे बकरा ईद कहते हैं, आपने बकरीद लिखा है विचार करें, जहाँ तक बात बी बी सी की है क्‍या कहूं बडा नाम है बडे लोग,
    पता नहीं सलमा जैदी हिन्‍दी जानती भी हैं या नहीं, त्‍यौहार पर ऐसा अगर इस वेब ने किया था तो गलत था,

    आप अपनी वर्तनी देखें मंदिर(मन्दिर), दावूद (दाऊद)

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  4. प्रिय अनुराग,

    जिन गलतियों की ओर आपने ध्यान आकृष्ट किया है वे अनायास नहीं हुई हैं.... यह एक योजनाबद्ध शैतानी है जो मुसलमान तो अक्सर करते ही रहते है..क्योंकि उनका चरित्र तो भारत में भी अपवाद छोड दें तो वही है, विदेशों में रहते हुए वे भारत को कमज़ोर करने और मुस्लिम दुनिया बनाने के सपने देखते रहते हैं...जब भी जहाँ भी वे सम्पादन में जुडे होंगे ऐसा होगा ही । पता कर लीजिए...कौन-कौन जुडा है बीबीसी हिन्दी टीम से । आपने ध्यान दिलाया साधुवाद ।

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  5. बीबीसी आज भी गुलाम ही सम्झ रहा है क्या

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  6. आप सही कह रहे हैं यह बी बी सी का नहीं सलमा जैदी का ही पूर्वाग्रह लगता है !

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  7. पिछली बार मैंने शायद आपके ब्लॉग पर ही अतानु डे का जिक्र और मुंबई हमलावरों को 'गनमैन' कहने वाली बात लिखी थी.

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  8. दर-असल हिन्दुओं के साथ यह बड़ा षणयंत्र है. जिसमें तथाकथित धर्मनिरपेक्ष भी शामिल हैं. जो लोग मन्दिरों में पशुबलि के विरुद्ध होते हैं (मैं भी इसके विरुद्ध हूं), वे बुद्धिजीवी बकरीद पर मुंह सिले बैठे रहते हैं. भारत के सभी चैनल और अखबार हेडली-हेडली भजते रहे लेकिन दाऊद गिलानी उसका असली नाम है यह सिरे से गोल कर गये. जो काम हजारों साल की गुलामी हम अनपढों से नहीं करा सकी, वह काम साठ साल के लोकतन्त्र ने पढे-लिखे हिन्दुओं के जरिये करा दिया.

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  9. बिल्कुल सही कहा आपने. आपने बहुत सुक्ष्म नजर से देखा है इस पूरे घटनाक्रम को. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. पशु बली संबंधी जिस समाचार का आपने जिक्र किया है...वही इनकी मंशा को स्पष्ट रूप से जाहिर कर रहा है...

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  11. शानदार.. आपकी पारखी नज़र से बीबीसी वाले भी बच नहीं पाए.. गंभीर मसले उठाए आपने..

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  12. यह इंगलेड वाले आज भी हमे गुलाम समझते है, हमे क्या यह अपने आप ओर ओरो से ऊंचा समझते है, लेकिन अब यह धीरे धीरे घूटनो पर आ रहे है, ओर यह गलतिया जान बुझ कर होती है, बाकी बात आप ने लिख ही दी

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  13. नागरिकता को उलट-पुलट कर लिखना, कुछ तथ्यों को बिना-मतलब नजरंदाज करना और कुछ को ऐसे ही प्रकाश में लाना सोची-समझी बात ही तो लगती है ।
    कोई पूर्वाग्रह है, या कह लीजिये स्वभाव !

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  14. ये गोरे अभी भी उसी मानसिकता में जीते हैं जो ६५ वर्ष पहले थी ....... बदलाव है पर प्रक्रिया बहुत धीरे है बदलाव की .........

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  15. वैरी सैड! आप मानवाधिकारवादी, सेक्यूलर, धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं और आप "संकीर्ण कट्टर हिन्दूवादी" ताकतों का साथ दे रहे हैं!
    आप हमारी तरह जाहिल हैं!

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  16. अनुराग जी,
    इस तरह की गलतियों को बी.बी.सी. administration की नज़र में लाना आवश्यक है....आप या पूरी पोस्ट उन्हें क्यूँ नहीं भेज देते ...??

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  17. कमाल है ये तो? मन तुरत ये यकीन करना तो नहीं चाहता कि सलमा ज़ैदी ऐसी हरकतों में शामिल होंगी, मगर.....

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  18. हिन्ही के उद्भट विद्वानों को वेतन अच्छा मिलता होगा।
    क्रिसमस की बधाई!

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  19. @ 'अदा'
    अनुराग जी,
    इस तरह की गलतियों को बी.बी.सी. administration की नज़र में लाना आवश्यक है....आप या पूरी पोस्ट उन्हें क्यूँ नहीं भेज देते ...??


    अदा जी,
    मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है, कृपया मार्गदर्शन करें ताकि गलतबयानी की इस परम्परा को रोककर बीबीसी हिन्दी को भी अन्य समाचार माध्यमों जैसा विश्वस्त बनाया जा सके.

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  20. गौतम जी,
    आपकी कठिनाई को समझना मुश्किल नहीं है मगर सच को कैसे नकारेंगे हम? और सलमा ज़िदा अकेली नहीं हैं इस प्रचार तंत्र में. ज़रा उर्दू सहारा के प्रमुख अजीज बरनी के बारे में भारतीय नागरिक - Indian Citizen का यह लेख पढ़िए: मुस्लिम ब्लॉगर का कसाब प्रेम

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  21. अदा जी से सहमत ..भेज दीजिए पोस्ट. और अब जब खाने के लिए प्रयोगशाला में मांस उपलब्ध है ही, पशुबलि रोक देनी चाहिए चाहें किसी भी धर्म की बात हो (यह मेरा निजी मत है क्योंकि मैं इसी कारन शाकाहारी हूँ).

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  22. @ Mohammed Umar Kairanvi
    इस ब्लॉग पर आपकी नज़र पडी, हम धन्य हुए

    वैसी ही गल्तियां आप कर रहे हैं
    इंसान गलतियों का पुतला है मगर गलती और गलत बयानी में फर्क है. सलमा जैदी और अजीज़ बरनी किस्म के लोग अपने माध्यमों के सहारे गलती ही नहीं गलत बयानी भी कर रहे हैं.

    बकरीद नाम का त्‍यौहार कोई नहीं होता, एकबार कलैण्‍डर या डायरी देख लें Id-ul-Azha मिलेगा, जाहिल उसे बकरा ईद कहते हैं
    ऐसा लिखकर आप अपने मुंह भले ही अपने को विद्वान कह लें मगर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के करोड़ों मुसलमानों को जाहिल का तमगा दे रहे हैं - आगे आपकी मर्जी!

    आप अपनी वर्तनी देखें मंदिर(मन्दिर), दावूद (दाऊद)
    जहाँ तक मंदिर की वर्तनी का सवाल है, आपका अतिवाद (extremist assertion) यहाँ भी गलत है क्योंकि मंदिर और मन्दिर दोनों ही सही हैं. दावूद की हिंदी वर्तनी वोइस ऑफ़ अमेरिका (VOI) से ली गयी है, लिंक यहाँ देखें: http://www.voanews.com/hindi/2009-12-08-voa12.cfm

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  23. ये अपने आप को कुछ भी कहें और कुछ भी बताएं, हैं आखिरकार साम्राज्‍यवादी और नस्‍लवादी ही। ये मनुष्‍य को मनुष्‍य नहीं मानते। इनका संकुचित दृष्टिकोण ही इन्‍हें घिनौना बनाता है।

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  24. sunil prabhakar-------
    anurag bhai baat mae dam hai.lakin bejuban janwar ka dard na bbc nae samja oor na hi aapne.ik baat bolu
    bali k liey bejubaan janwar mandir k baher katey yaa fir mandir k baher ya fir kisi church k paster oor father k khaney k liey kata gya janwar, issey koi antar nai padta.
    they all are cruel
    jai hind----inqulab zindabaad
    sunilparbhakar111@gmail.com

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  25. sunil prabhakar-------
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    sunilparbhakar111@gmail.com

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  26. sunil prabhakar-------
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    sunilparbhakar111@gmail.com

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  27. सुनील प्रभाकर जी,
    पशु-हिंसा (बल्कि किसी भी प्रकार की हिंसा के बारे में) आपकी बात बिलकुल सही है। बलि कहीं भी हो बर्बरता ही है। किसी भी प्रकार की हिंसा और मांसाहार के विरोध में इस ब्लॉग पर पहले भी बहुत कुछ कहा जा चुका है. उदाहरण के लिए आप लम्बी श्रंखला में लिखा गया निम्न आलेख देख सकते हैं:
    शाकाहार और हत्या
    आपके सुझावों का स्वागत है।
    धन्यवाद!

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